किरन धुंध के किनारे
खड़ा था, उसके हाथ कांप रहे थे। उसके सामने का दृश्य सबसे कठिन था—उसका पिता, जो
सख्त और मांग करने वाला आदमी था, जिसने हमेशा उससे सबसे अच्छा करने की उम्मीद की।
लेकिन अब, वही पिता जो उसे खुद को साबित करने के लिए संघर्ष करने की उम्मीद करता
था, उसके सामने घुटने टेकते हुए, शोक से भरा चेहरा लिए खड़ा था।
“किरन, तुमने मुझे निराश किया है,” उसके पिता की आवाज़ टूटी हुई थी। “तुम कभी अपनी
पूरी क्षमता तक नहीं पहुँच पाओगे। मैंने अपना समय तुम पर बर्बाद किया।”
किरन को इन शब्दों का दर्द महसूस हुआ, वर्षों तक अपने पिता की स्वीकृति प्राप्त
करने के लिए किए गए संघर्ष का बोझ अचानक उस पर टूट पड़ा। “मैं… मैंने बहुत कोशिश
की। मुझे लगा था कि मैं वो हो सकता हूँ जो अंत में आपकी उम्मीदों पर खरा उतर सके।
लेकिन यह कभी पर्याप्त नहीं था, है ना?”
उसके पिता की आकृति एक साए में बदल गई, और धुंध में विलीन हो गई। उन यादों का दर्द
रहा, लेकिन चित्र जल्दी ही गायब हो गया।
तभी, एक नरम हाथ उसके कंधे पर रखा, और एक नई आवाज़ उसके भीतर गूंजने लगी, शांत
लेकिन स्थिर। “तुम्हें किसी को भी कुछ साबित करने की ज़रूरत नहीं है। तुम पहले ही
अपनी क़ीमत साबित कर चुके हो, अपनी ताकत से नहीं, बल्कि अपने दिल से। और यही सब
कुछ है जो मायने रखता है।”
किरन ने अपनी आँखें बंद की, उन शब्दों का वजन अपने दिल में महसूस किया। उसके पिता
का साया अब नहीं था, और धुंध छंटने लगी।