डर का दिल-अध्यक्ष 32

मीरा आगे बढ़ी, उसका दिल तेज़ी से धड़क रहा था जब धुंध ने रास्ता दिया। उसके चारों ओर की दुनिया अंधी हो गई, और वह एक परिचित जंगल में खड़ी थी—वह जंगल जिसमें वह बचपन में गई थी। पेड़ ऊंचे और घने थे, उनके शाखाएँ जैसे काले पंजों की तरह बाहर बढ़ रही थीं। और जंगल के बीच में एक आकृति खड़ी थी—उसकी बहन, एवा, जो पीठ मोड़े खड़ी थी। “मीरा,” एवा की आवाज़ गूंजती हुई आई, दूर और उदास। “तुम वापस नहीं आई। तुमने मुझे छोड़ दिया।” मीरा की … Continue reading डर का दिल-अध्यक्ष 32